Saturday, March 2, 2019

VACHASPATI -VAMTI भामती की अदभुत साधना

वेदान्त दर्शन (ब्रह्मसूत्र) आध्यात्म विद्या का अत्यन्त सरस विषय है पर उतना ही क्लिष्ट भी।पंडित वाचस्पति मिश्र (कैयट) ने उसके भाष्य का संकल्प किया। उन्हीं दिनों उनका विवाहसंस्कार भी हुआ जब उनके मस्तिष्क में इस भाष्य की कल्पना चल रही थी। इधर घर मेंधर्मपत्नी ने प्रवेश किया उधर पंडित जी ने भाष्य प्रारम्भ किया। विषय है ही ऐसा कि उसकीगहरार्इ में जितना डूबों उतनी ही अधिक गहरार्इ दिखार्इ देती चली जाये। पंडित जी को भाष्यपूरा करने में प्राय: 80 वर्ष लगे।
ग्रन्थ पूरा होते ही उन्हें स्मरण आया-वे विवाह कर धर्मपत्नी को घर लाये थे किन्तु अपनीसाहित्य साधना में वे उन्हें बिल्कुल ही भूल गये। अपराध बोध के कारण बाचस्पति सीधाभामती के पास गये और इतने दिनों तक विस्मृत किए जाने का पश्चाताप करते हुए क्षमायाचना की। पति का स्नेह पाकर भामती भाव-विभोर हो गर्इ। पंडित जी ने पूछा-मैंने इतनेदिनों तक आपका कोर्इ ध्यान नहीं दिया फिर भी दिनचर्या में कोर्इ व्यतिरेक नहीं आया जीवननिर्वाह की सारी व्यवस्था कैसे हुर्इ?
भामती ने बताया-स्वामी! हम जंगल से मूँज काट लाते थे। उसकी रस्सी बट कर बाजार में बेचआते थे। इससे इतनी आजीविका मिल जाती थी कि हम दोनों का जीवन निर्वाह भलीभाँति होजाता था। इसी तरह हम दोनों के भोजन तेल, लेखन सामग्री आदि की सभी आवश्यकव्यवस्थायें होती चलीं आर्इ। आप इस देश, जाति, धर्म और संस्कृति के लिए ब्रह्मसूत्र के भाष्यजैसा कठिन तप कर रहे थे उसमें मेरा आपकी सहधर्मिणी का भी तो योगदान आवश्यक था?इस अभूतपूर्व कर्त्तव्य परायणता से विभोर वाचस्पति मिश्र ने अपना ग्रन्थ उठाया और उसकेऊपर ‘‘भामती’’ लिखकर गर्न्थ का नामकरण कर दिया। वाचस्पति मिश्र की अपेक्षा अपने नामके कारण ‘‘भामती’’ ब्रह्मसूत्र की आज कहीं अधिक ख्याति है।


वाचस्पति मिश्र (९०० – ९८० ई) भारत के दार्शनिक थे जिन्होने अद्वैत वेदान्त का भामती नामक सम्प्रदाय स्थापित किया। वाचस्पति मिश्र ने नव्य-न्याय दर्शन पर आरम्भिक कार्य भी किया जिसे मिथिला के १३वी शती के गंगेश उपाध्याय ने आगे बढ़ाया।वाचस्पति मिश्र प्रथम मिथिला के ब्राह्मण थे जो भारत और नेपाल सीमा के निकट मधुबनी के पास अन्धराठाढी गाँव के निवासी थे। इन्होने वैशेषिक दर्शन के अतिरिक्त अन्य सभी पाँचो आस्तिक दर्शनों पर टीका लिखी है। उनके जीवन का वृत्तान्त बहुत कुछ नष्ट हो चुका है। उनकी एक कृति का नाम उनकी पत्नी भामती के नाम पर रखा है। वाचस्पति मिश्र प्रथम ने उस समय की हिन्दुओं के लगभग सभी प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदायों की प्रमुख कृतियों पर भाष्य लिखें हैं। इसके अतिरिक्त तत्वबिन्दु नामक एक मूल ग्रन्थ भी लिखा है जो भाष्य नहीं है।
  • 1. तत्त्ववैशारदी – योगभाष्य पर टीका,
  • 2. तत्त्वकौमुदी – सांख्यकारिका पर टीका,
  • 3. न्यायसूची निबन्ध – न्यायसूत्र सम्बन्धी,
  • 4. न्यायवार्तिकतात्पर्यटीका – न्यायवार्तिक पर टीका,
  • 5. न्याय कणिका – मण्डनमिश्र के विधिविवेक ग्रन्थ पर टीका,
  • 6. भामती – ब्रह्मसूत्र पर टीका सर्वाधिक मान्य एवं आदरणीय
  • 7. तत्त्वसमीक्षा – ब्रह्मसिद्धि ग्रन्थ का टीका,
  • 8. ब्रह्मसिद्धि – वेदान्त विषयक ग्रन्थ
  • 9. तत्त्वबिन्दु – शब्दतत्त्व तथा शब्दबोध पर आधारित लघु ग्रन्थ,

वाचस्पति मिश्र (२)

दूसरे वाचस्पति मिश्र भी मिथिला के ही मधुबनी थाना के समौल गाँव के निवासी थे। ये पन्द्रहवीं सदी के अंत और सोलहवीं सदी के प्रारम्भ के राजा भैरव सिंह के समकालीन थे जिनका राज्य १५१५ तक था और फिर राजा रामभद्र के समय अंतिम पुस्तक लिखी। जिनकी रचित ४१ पुस्तकें हैं (१० दर्शन पर और ३१ स्मृति पर)
दर्शन पर
१. न्याय तत्वलोक
२. न्याय सुत्रोद्धार
३. न्याय रत्नप्रकाश
४. प्रत्यक्ष निर्णय
५. शब्द निर्णय
६. अनुमान निर्णय
७. खंडनोद्धार
८. गंगेश के तत्वचिंतामणि पर टीका
९. अनुमानखंड पर टीका
१०. न्याय -चिंतामणि प्रकाश शब्द खंडन पर टीका
स्मृति पर
१. कृत्य चिंतामणि
२. शुद्धि चिंतामणि
३. तीर्थ चिंतामणि
४. आचार चिंतामणि
५. आन्हिक चिंतामणि
६. द्वैत चिंतामणि
७. नीति चिंतामणि (संभवतः नवटोल के लूटन झा के साथ, पर कोई पाण्डुलिपि उपलब्ध नहीं, किन्तु विवाद चिंतामणि में इसका सन्दर्भ दिया गया है)
८. विवाद चिंतामणि
९. व्यव्हार चिंतामणि
१०. शूद्राचार चिंतामणि
११. श्राद्ध चिंतामणि
१२. तिथि चिंतामणि
१३. द्वैत निर्णय
१४. महादान निर्णय
१५. विवाद निर्णय
१६. शुद्धि निर्णय
१७. कृत्य महार्णव
१८. गया श्राद्ध पद्धति
१९. चन्दन धेनु प्रमाण
२०. दत्तक विधि या दत्तक पुत्रेष्टि यज्ञविधि
२१ . छत्र योगो धुत दोषंती विधि
२२. श्राद्ध विधि
२३. गया पत्तलक
२४. तीर्थ कल्पलता
२५. तीर्थलता
२६ . श्राद्धकल्प
२७. कृत्य प्रदीप
२८. सार संग्रह
२९. पितृभक्ति तरंगिणी
३०. व्रत निर्णय का पूर्वार्ध

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