जरूथुस्त्र--
एक बार पर्शिया का राज विशतस्या, जब युद्ध जीतकर लौट रहा था, तो
वह जरथुस्त्र के निवास के निकट जा पहुंचा। उसने इस रहस्यदर्शी संत के दर्शन करने
की सोची। राज ने जरथुस्त्र के पास जाकर कहा, ‘’मैं आपके पास
इसलिए अया हूं कि शायद आप मुझे सृष्टि और प्रकृति के नियम के विषय में कुछ समझा
सकें। मैं यहां पर अधिक समय तो नहीं रूक सकता हूं, क्योंकि
मैं युद्ध स्थल से लौट
रहा हूं। और मुझे जल्दी ही अपने राज्य में वापस पहुंचना है, क्योंकि राज्य के महत्वपूर्ण मसले महल में मेरी प्रतीक्षा
कर रहे है।
जरथुस्त्र राजा की और देखकर मुस्कुराया और जमीन से गेहूँ का एक दाना उठा कर राजा को
दे दिया और उस गेहूँ के दाने के माध्यम से यह बताया कि ‘’गेहूँ के इस छोटे से
दाने से, सृष्टि के सारे नियम और प्रकृति की सारी शक्तियां
समाई हुई है।
राजा
तो जरथुस्त्र के इस उत्तर को समझ ही न सका, और जब उसने
अपने आसपास खड़े लोगों के चेहरे पर मुस्कान देखी तो वह गुस्से के मारे आग-बबूला
हो गया। और उसे लगा कि उसका उपहास किया गया है, उसने गेहूँ
के उस दाने को उठाकर जमीन पर पटक दिया। और जरथुस्त्र से उसने कहा, ‘’मैं मूर्ख था जो मैंने अपना समय खराब किया, और आप से
यहां पर मिलने चला आया।‘’
वर्ष
आए और गए। वह राजा एक अच्छे प्रशासन और योद्धा के रूप में खूब सफल रहा। और खूब ही
ठाठ-बाट और ऐश्वर्य का जीवन जी रहा था। लेकिन रात को यह सोने के लिए अपने विस्तर
पर जाता तो उसके मन में बड़े ही अजीब-अजीब से विचार से विचार उठने लगते और उसे
परेशान करते; मैं इस आलीशान महल में खूब ठाठ बाट और ऐश्वर्य
से जीवन जी रहा हूं, लेकिन आखिरकार मैं कब तक इस समृद्धि,
राज्य, धन-दौलत से आनंदित होती रहूंगा। और जब
मैं मर जाऊँगा तो फिर क्या होगा। क्या मेरे राज्य की शक्ति, मेरा घन-दौलत, संपति मुझे बीमारी से और मृत्यु से
बचा सकेंगी। क्या मृत्यु के साथ ही सब कुछ समाप्त हो जाता है?
राजमहल
में एक भी आदमी राजा के इन प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सका। लेकिन इसी बीच जरथुस्त्र
की प्रसिद्धि चारों और फैलती चली गई। इसलिए राजा ने अपने अहंकार को एक तरफ रखकर,
घन दौलत के साथ एक बड़ा काफिला जरथुस्त्र के पास भेजा और साथ ही
अनुरोध भरा निमंत्रण पत्र लिखा कि ‘’मुझे बहुत अफसोस है, जब
मैं अपनी युवावस्था में आपसे मिला था, उस समय मैं जल्दी
में था और आपसे लापरवाही से मिला था। उस समय मैं आपसे अस्तित्व के गूढ़ तम प्रश्नों
की व्याख्या जल्दी करने के लिए कहा था। लेकिन अब मैं बदल चुका हूं, और जिसका उत्तर नहीं दिया जा सकता, उस असंभव उत्तर
के मांग में मैं नहीं करता। लेकिन अभी भी मुझे सृष्टि के नियम और प्रकृति की शक्तियों
को जानने की गहन जिज्ञासा है। जिस समय मैं युवा था। उस समय से ज्यादा जिज्ञासा है
यह सब जानने की। मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप मेरे महल में आएं। और अगर आपका महल
में आना संभव न हो, तो आप अपने सबसे अच्छे शिष्य में से
किसी एक शिष्य को भेज दें, ताकि वह मुझे जो कुछ भी इन
प्रश्नों के विषय में समझाया जा सकता हो समझा सके।
थोड़े
दिनों के बाद वह काफिला और संदेशवाहक वापस लौट आये। उन्होंने राजा को बताया कि वे
जरथुस्त्र से मिले। जरथुस्त्र ने अपने आशीष भेजे है। लेकिन आपने उनको जो खजाना
भेजा था, वह उन्होंने वापस लोटा दिया है। जरथुस्त्र
ने उस खजानें को यह कहकर वापस कर दिया है कि उसे तो खानों का खजाना मिल चुका है।
और साथ ही जरथुस्त्र ने एक पत्ते में लपेट कर कुछ छोटा सा उपहार राजा के लिए
भेजा है। और संदेशवाहक ने कहां कि वे राजा से जाकर कह दें कि इसमे ही वह शिक्षक है
जो कि उसे सब कुछ समझा सकता है।
राजा
ने जरथुस्त्र के भेजे हुए उपहार को खोला और फिर उसमें से उसी गेहूँ के दाने को
पाया—गेहूँ का वही दाना जिसे जरथुस्त्र ने पहले भी उसे दिया था। राजा ने सोचा कि
जरूर इस दाने में कोई रहस्य या चमत्कार होगा, इसलिए राजा
ने एक सोने के डिब्बे में उस दाने को रखकर अपने खजानें में रख दिया। हर रोज वह उस
गेहूँ के दाने को इस आशा के साथ देखता कि एक दिन जरूर कुछ चमत्कार घटित होगा,
और गेहूँ का दाना किसी ऐसी चीज में या किसी ऐसे व्यक्ति में
परिवर्तित हो जाएगा जिससे कि वह सब कुछ सीख जाएगा जो कुछ भी वह जानना चाहता है।
महीने
बीते, और फिर वर्ष पर वर्ष बीतते चले गए। लेकिन कुछ भी चमत्कार
नहीं हुआ। अंतत: राजा ने अपना धैर्य खो दिया और फिर से बोला, ‘’ऐसा मालूम होता है, कि जरथुस्त्र ने फिर से मुझे
धोखा दिया है। या तो वह मेरा उपहास कर रहा है। या फिर वह मेरे प्रश्नों के उत्तर
जानता ही नहीं। लेकिन मैं उसे दिखा दूँगा कि मैं बिना उसकी किसी मदद के भी
प्रश्नों के उत्तर खोज सकता हूं।‘’ फिर उस राजा ने भारतीय रहस्यदर्शी के पास
अपने काफिले को भेजा। जिसका नाम तशंग्रगाचा था। उसके पास संसार के कौने-कौने से
शिष्य आते थे, और फिर से उसने उस काफिले के साथ वहीं
संदेशवाहक और वहीं खजाना भेजा जिसे उसने जरथुस्त्र के पास भेजा था।
कुछ
महीनों के पश्चात संदेशवाहक उस भारतीय दार्शनिक को अपने साथ लेकिन वापस लौटे।
लेकिन उस दार्शनिक ने राजा से कहा, ‘’मैं आपका शिक्षक बन कर
सम्मानित हुआ, लेकिन यह मैं साफ-साफ बता देना चाहता हूं कि
मैं खास करके आपके देश में इसलिए आया हूं ताकि मैं जरथुस्त्र के दर्शन कर सकूँ।‘’
इस
पर राजा सोने का वह डिब्बा उठा लाया जिसमें गेहूँ का दाना रखा हुआ था। और वह उसे
बताने लगा, ‘’मैंने जरथुस्त्र से कहा था कि मुझे कुछ
समझाए-सिखाएं। और देखो, उन्होंने यह क्या भेज दिया है,
मेरे पास। यह गेहूँ का दाना वह शिक्षक है जो मुझे सृष्टि के नियमों
और प्रकृति की शक्तियों के विषय में समझाए गा। क्या यह मेरा उपहास नहीं?
वह दार्शनिक बहुत देर तक उस गेहूँ के दाने की तरफ देखता रहा, और उस दाने की तरफ देखते-देखते जब वह ध्यान में डूब गया तो
महल में चारों और एक गहन मौन छा गया। कुछ समय बाद वह बोला, ‘’मैंने यहां आने के लिए जो इतनी लंबी यात्रा की उसके लिए मुझे कोई पश्चाताप
नहीं है, क्योंकि अभी तक तो मैं विश्वास ही करता था,
लेकिन अब मैं जानता हूं कि जरथुस्त्र सच में ही एक महान सदगुरू है।
गेहूँ का यह छोटा सा दाना हमें सचमुच सृष्टि के नियमों और प्रकृति की शक्तियों
के विषय में सिखा सकता है, क्योंकि गेहूँ का यह छोटा सा
दाना अभी और यहीं अपने में सृष्टि के नियम और प्रकृति की शक्ति को अपने में
समाएँ हुए है। आप गेहूँ के इस दाने को सोने के डिब्बे में सुरक्षित रखकर पूरी बात
को चूक रहे है।
अगर
आप इस छोटे से गेहूँ के दाने को जमीन में बो दें, जहां से यह
दाना संबंधित है, तो मिट्टी का संसर्ग पाकर, वर्षा-हवा-धूप , और चाँद-सितारों की रोशनी पाकर,
यह और अधिक विकसित हो जाएगा। जैसे कि व्यक्ति की समझ और ज्ञान की
विकास होता है, तो वह अपने अप्राकृतिक जीवन को छोड़कर
प्रकृति और सृष्टि के निकट आ जाता है। जिससे कि वह संपूर्ण ब्रह्मांड के अधिक
निकट हो सके। जैसे अनंत-अनंत ऊर्जा के स्त्रोत धरती में बोए हुए गेहूँ के दाने की
और उमड़ते है, ठीक वैसे ही ज्ञान के अनंत-अनंत स्त्रोत व्यक्ति
की और खुल जाते है। और तब तक उसकी तरफ बहते रहते है जब तक कि व्यक्ति प्रकृति और
संपूर्ण ब्रह्मांड के साथ एक न हो जाए। अगर गेहूँ के इस दाने को ध्यानपूर्वक देखो,
तो तुम पाओगे कि इसमे एक और रहस्य छुपा हुआ है—और वह रहस्य है
जीवन की शक्ति का। गेहूँ का दाना मिटता है, और उस मिटने में
ही वह मृत्यु को जीत लेता है।
राजा
ने कहा, ‘’आप जो कहते है वह सच है। फिर भी अंत में तो पौधा
कुम्हलाएगा और मर जाएगा। और पृथ्वी में विलीन हो जाएगा।
उस
दार्शनिक ने कहा, लेकिन तब तक नहीं मरता, जब तक कि वह सृष्टि की प्रक्रिया को पूरा नहीं कर लेता। और स्वयं को
हजारों गेहूँ के दानों में परिवर्तित नहीं कर लेता। जैसे छोटा सा गेहूँ का दाना
मिटता है तो पौधे के रूप में विकसित हो जाता है। ठीक वैसे ही जब तुम भी जैसे-जैसे
विकसित होने लगते हो, तुम्हारे रूप भी बदलने लगते है। जीवन
से और नए जीवन निर्मित होते है, एक सत्य से और सत्य जन्मते
है, एक बीज से और बीजों का जन्म होता है। केवल जरूरत है तो
एक कला सीखने की और वह है मरने की कला। उसके बाद ही पुनर्जन्म होता है, मेरी सलाह है कि हम जरथुस्त्र के पास चलें, ताकि वे
हमें इस बारे में कुछ अधिक बताएं।
कुछ
ही दिनों के पश्चात वे जरथुस्त्र के बग़ीचे में आए। प्रकृति की पुस्तक ही उसकी
एकमात्र पुस्तक थी। और उसने अपने शिष्यों को उस प्रकृति की पुस्तक को ही पढ़ने
की शिक्षा दी। इन दोनों ने जरथुस्त्र के बग़ीचे में एक और बड़े सत्य की शिक्षा
पाई। कि जीवन और कार्य, अवकाश और अध्यन, एक ही चीज है; जीने का सही ढंग सरल और स्वाभाविक
जीवन जीना है। जीवन सृजनात्मक होना चाहिए। उसी में व्यक्ति का विकास समग्रता से
और सक्रियता से होता है।
अस्तित्व
और जीवन के नियमों को पढ़ने-सिखते उनका एक वर्ष बीत गया। अंतत रात अपने नगर लौट
आया और उसने जरथुस्त्र से निवेदन किया कि वह अपनी महान शिक्षा के सार तत्व को व्यवस्थित
रूप से संगृहीत कर दे। जरथुस्त्र ने वैसा ही किया, और उसी
के परिणामस्वरूप पारसियों की महान पुस्तक ‘’जेंदावेस्ता’’ का आविर्भाव हुआ।
यह
पूरी कहानी बस यही बताती है कि मनुष्य परमात्मा कैसे हो सकता है।
जो
कुछ मनुष्य में बीज रूप में छिपा हुआ है, वह अगर उद्घाटित
हो जाए, प्रकट हो जाए, तो मनुष्य
परमात्मा हो सकता है।
ओशो
पतंजलि:
योग-सूत्र भाग—4
प्रवचन—4
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