Wednesday, August 22, 2018

❤️ओशो के बचपन की घटना❤️

❤️ओशो के बचपन की घटना❤️
मैं छोटा था तो मेरे पिता ने मुझे सिर्फ एक बार सजा दी। बहुत मुश्किल है ऐसा पिता पाना, जिसने एक बार सजा दी है। एक चपत मुझे मारी, सिर्फ एक बार। मैंने उनसे कहा कि मारना आपको जितना हो आप मार सकते हैं, लेकिन फिर एक बात का ध्यान रखना,कि मेरे और आपके बीच प्रेम का रिश्ता न रह जाएगा। आप मुझे नहीं मार रहे,प्रेम को मार रहे हैं। मैं कैसे प्रेम कर सकूंगा उस व्यक्ति को जो मुझे दुःख दे रहा है, पीड़ा दे रहा है,परैशान कर रहा है। निश्चित ही मैं निर्भर हूं अभी आप पर, अपने पैरों पर अभी खड़ा भी नहीं हो सकता, तो आपकी जो मर्जी। मारेंगे तो भी ठीक है,सहना होगा। लेकिन मुझे नहीं मार रहे हैं,ख्याल रखना, मेरे और आपके बीच जो प्रेम है उसे मार रहे हैं।
वे संवेदनशील व्यक्ति थे, बहुत संवेदनशील।बस पहली और आखिरी ‌सजा वही रही। उन्होंने फिर मुझे दो शब्द भी कभी नहीं कहे, मारना तो दूर। मैंने कुछ भी किया हो--ठीक किया हो,गलत किया हो, उन्होंने ‌जैसे एक बात तो बहुत ही गहरे मन में ले ली कि प्रेम को नष्ट नहीं करना है। मुझे पैसों की जरूरत पड़े, तो कहीं चुराना.न.पड़े....किस बच्चे को चुराना नहीं पड़ता?इस.ख्याल से कि कभी मुझे चुराना न पड़े, वे एक डिब्बे में पैसे रख देते. थे कि जब मुझे चाहिए हों मैं निकाल लूं,पूछना न पड़े।क्यों कि पूछो तो अड़चन होती है- किसलिए चाहिए, क्यों चाहिए, अभी कल ही. तो लिए थे।मुझे पूछना न पड़े, उन्हें पूछना न पड़े, इसलिए पैसे रख देते थे, जब. डिब्बा खाली हो जाए तो भर देते।फिर मेरे और उनके बीच प्रेम की गहराई बढ़ती चली गई ।
जिससे भय हो उससे प्रेम नहीं हो सकता, उससे. घृणा होती है।

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