Thursday, October 20, 2022

प्रकृ ति और पुरुष का वर्णन

 भारतीय दर्शन के छः प्रकारों मेंसेस ांख्य भी एक हैजो प्राचीनकाल मेंअत्यंत लोकप्रप्रय तथा प्रथथत हुआ था। यह अद्वैत वेदान्त सेसवशथा प्रवपरीत मान्यताएँरखनेवाला दर्शन है। इसकी स्थापना करनेवालेमूल व्यक्तत कप्रपल कहेजातेहैं। 'सांख्य' का र्ाक्ददक अथशहै- 'संख्या सम्बंधी' या प्रवश्लेषण। इसकी सबसेप्रमुख धारणा सक्ृटि के प्रकृतत-पुरुष सेबनी होनेकी है, यहाँप्रकृतत (यातन पचं महाभतू ों सेबनी) जड़ हैऔर पुरुष (यातन जीवात्मा) चेतन। योग र्ास्रों के ऊजाशस्रोत (ईडा-प्रप ंगला), र्ाततों के शर्व-र्क्तत के शसद्ांत इसके समानान्तर दीखतेहैं। भारतीय संस्कृतत मेंककसी समय सांख्य दर्शन का अत्यंत ऊँ चा स्थान था। देर् के उदात्त मक्स्तटक सांख्य की प्रवचार पद्तत सेसोचतेथे। महाभारतकार नेयहाँतक कहा हैकक ज्ञ नांच लोकेयदिह स्ति ककांचचि्स ांख्य गिांिच्च महन्मह त्मन्(र्ांतत पवश301.109)। वस्ततु : महाभारत मेंदार्शतनक प्रवचारों की जो पटृठभशूम है, उसमेंसांख्यर्ास्र का महत्वपूणशस्थान है। र्ाक्न्त पवशके कई स्थलों पर सांख्य दर्शन के प्रवचारों का बड़ेकाव्यमय और रोचक ढंग सेउल्लेख ककया गया है। सांख्य दर्शन का प्रभाव गीता मेंप्रततपाददत दार्शतनक पटृठभूशम पर पयाशप्त रूप सेप्रवद्यमान है। इसकी लोकप्रप्रयता का कारण एक यह अवश्य रहा हैकक इस दर्शन नेजीवन मेंददखाई पड़नेवालेवैषम्य का समाधान त्ररगुणात्मक प्रकृतत की सवशकारण रूप मेंप्रततटठा करके बड़ेसुंदर ढंग सेककया। सांख्याचायों के इस प्रकृतत-कारण-वाद का महान गुण यह हैकक पथृ क्-पथृ क्धमशवालेसत,्रजस्तथा तमस्तत्वों के आधार पर जगत्की प्रवषमता का ककया गया समाधान बड़ा बुप्रद्गम्य प्रतीत होता है। ककसी लौककक समस्या को ईश्वर का तनयम न मानकर इन प्रकृततयों के तालमेल त्रबगड़नेऔर जीवों के पुरुषाथशन करनेको कारण बताया गया है। यातन, सांख्य दर्शन की सबसेबड़ी महानता यह हैकक इसमेंसक्ृटि की उत्पक्त्त भगवान के द्वारा नहींमानी गयी हैबक्ल्क इसेएक प्रवकासात्मक प्रकिया के रूप में समझा गया हैऔर माना गया हैकक सक्ृटि अनेक अनेक अवस्थाओं(phases) सेहोकर गुजरनेके बाद अपनेवतशमान स्वरूप को प्राप्त हुई है। कप्रपलाचायशको कई अनीश्वरवादी मानतेहैंपर भग्वदगीता और सत्याथशप्रकार् जैसेग्रंथों मेंइस धारणा का तनषेध ककया गया है। स ांख्य के प्रमुख ससद् ांत:  सांख्य दृश्यमान प्रवश्व को प्रकृतत-पुरुष मूलक मानता है। उसकी दृक्टि सेके वल चेतन या के वल अचेतन पदाथशके आधार पर इस थचदप्रवदात्मक जगत्की संतोषप्रद व्याख्या नहींकी जा सकती। इसीशलए लौकायततक आदद जड़वादी दर्शनों की भाँतत सांख्य न के वल जड़ पदाथशही मानता हैऔर न अनेक वेदांत संप्रदायों की भाँतत वह के वल थचन्मार ब्रह्म या आत्मा को ही जगत्का मूल मानता है। अप्रपतुजीवन या जगत्मेंप्राप्त होनेवालेजड़ एवंचेतन, दोनों ही रूपों के मूल रूप सेजड़ प्रकृतत, एवंथचन्मार पुरुष इन दो तत्वों की सत्ता मानता है।  जड़ प्रकृतत सत्व, रजस एवंिमस्- इन तीनों गुणों की साम्यावस्था का नाम है। येगुण "बल च गुणवत्ृतम"् न्याय के अनुसार प्रतत क्षण पररगामी हैं। इस प्रकार सांख्य के अनुसार सारा प्रवश्व त्ररगुणात्मक प्रकृतत का वास्तप्रवक पररणाम है। र्ंकराचायशके वेदांत की भाँतत भगवन्माय: का प्रववतश, अथातश ्असत्कायशअथवा शमथ्या प्रवलास नहींहै। इस प्रकार प्रकृतत को पुरुष की ही भाँतत अज और तनत्य माननेतथा प्रवश्व को प्रकृतत का वास्तप्रवक पररणाम सत्कायशमाननेके कारण सांख्य सच्चेअथों मेंबाह्यथाथशवादी या वस्तुवादी दर्शन हैं। ककंतुजड़ बाह्यथाथशवाद भोग्य होनेके कारण ककसी चेतन भोतता के अभाव मेंअपाथशक या अथर्श ून्य अथवा तनटप्रयोजन है, अत: उसकी साथशकता के शलए सांख्य चेतन पुरुष या आत्मा को भी माननेके कारण अध्यात्मवादी दर्शन है।  मूलत: दो तत्व माननेपर भी सांख्य पररणाशमनी प्रकृतत के पररणामस्वरूप तेईस अवांतर तत्व भी मानता है। तत्व का अथशहै'सत्य ज्ञान'। इसके अनुसार प्रकृतत सेमहत्या बप्रुद्, उससेअहंकार, तामस, अहंकार सेपंच-तन्मार (र्दद, स्पर्श, रूप, रस तथा गंध) एवंसाक्त्वक अहंकार सेग्यारह इंदिय (पंच ज्ञानेंदिय, पंच कमेंदिय तथा उभयात्मक मन) और अंत मेंपंच तन्मारों सेिमर्: आकार्, वाय, ुतेजस, ्जल तथा पथ्ृवी नामक पंच महाभूत, इस प्रकार तेईस तत्व िमर्: उत्पन्न होतेहैं। इस प्रकार मुख्यामुख्य भेद सेसांख्य दर्शन 25 तत्व मानता है। जैसा पहलेसंके त कर चुके हैं, प्राचीनतम सांख्य ईश्वर को 26वाँतत्व मानता रहा होगा। इसके साक्ष्य महाभारत, भागवत इत्यादद प्राचीन सादहत्य मेंप्राप्त होतेहैं। यदद यह अनुमान यथाथशहो तो सांख्य को मूलत: ईश्वरवादी दर्शन मानना होगा। परंतुपरवती सांख्य ईश्वर को कोई स्थान नहींदेता। इसी सेपरवती सादहत्य मेंवह तनरीश्वरवादी दर्शन के रूप मेंही उक्ल्लखखत शमलता है।  स ांख्य िर्शन के २५ ित्व आत्म (पुरुष) अांिःकरण (3) : मन, बप्रुद्, अहंकार ज्ञ नेस्न्िय ाँ(5) : नाशसका, क्जह्वा, नेर, त्वचा, कणश कमेस्न्िय ाँ(5) : पाद, हस्त, उपस्थ, पाय, ुवाक् िन्म त्र यें(5) : गन्ध, रस, रूप, स्पर्श, र्दद मह भूि (5) : पथ्ृवी, जल, अक्ग्न, वाय, ुआकार

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